mansik rog - 1 in Hindi Fiction Stories by Priya Saini books and stories PDF | मानसिक रोग - 1

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मानसिक रोग - 1

प्रकृति का अद्भूत नियम है, "जिसनें जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है"। कहा जाता है कि इंसान हो या जानवर, "पैदा होने से पहले उसकी मृत्यु निश्चित कर दी जाती है। उसे कब कहाँ कैसे मरना है, सब लिखा होता है।" मृत्यु पर किसी का ज़ोर नहीं परंतु जब इंसान ज़िंदा होकर ही मर जाये या उसके पास जीने की वजह ही न रहे। ज़िंदा लाश जिसे कहा जाता है, उस इंसान की ज़िन्दगी कैसे गुज़र होगी? ऐसी ही एक कहानी है श्लोका की, आईये पढ़ते है श्लोका की कहानी।
छोटे से शहर में रहने वाली श्लोका बचपन से ही पढ़ाई में बहुत बुद्धिमान थी। हर कक्षा में प्रथम आती। पढ़ाई के साथ-साथ उसे खेल-कूद, घर की साज-सज्जा, कला में भी रुचि थी। वह अपनी माँ के साथ घर के काम में भी हाथ बटाती। वह माँ-बाप की इकलौती संतान थी। श्लोका को कभी भी खाली बैठना पसन्द नहीं था। वह हमेशा ही कुछ न कुछ सीखती रहती। जब वह छोटी थी तो ड्रॉइंग करना ग्रीटिंग बनाना उसे बहुत पसंद था। उसे डांस करना भी बहुत पसंद था। टीवी की आवाज़ तेज करके वह अभिनेत्रियों की तरह डांस करने का प्रयास करती। उसकी इस हरकत को देख कर उसके माता-पिता भी बहुत खुश होते। उन्होनें श्लोका को एक डांस क्लास में भेजना शुरू किया परंतु छोटे शहर में ज़्यादा सुविधा न होने से श्लोका ज़्यादा कुछ न सीख पाई।
वक़्त गुज़रता गया और श्लोका बड़ी हो चली। जहाँ एक तरफ छोटे शहर में लड़कियां कला और गृह-विज्ञान जैसे विषय लेतीं वहाँ श्लोका ने विज्ञान को चुना। उसको माँ-पिता का पूरा सहयोग भी मिला। अपने कॉलेज की पढ़ाई के साथ ही श्लोका ने ब्यूटी पार्लर, सिलाई- कढ़ाई और कंप्यूटर कोर्सेज भी किये। सब कुछ अच्छा ही चल रहा था। श्लोका अपनी ज़िन्दगी में कुछ बड़ा करना चाहती थी। वह अपने माता का का नाम ऊँचा करना चाहती थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद श्लोका ने नौकरी करने का सोचा, पहले उसने सरकारी नौकरी के लिए तैयारी की परन्तु कही भी उसका चयन नहीं हुआ। उसने बहुत सारी परीक्षा दी पर परीक्षा अच्छी होती तो परीक्षा टल जाती और फिर दुबारा होने का पता नहीं होता, कभी 2 साल तो कभी 3-4 साल तक भी कोई खबर न आती। कभी लिखित परीक्षा में पास हो जाती तो इंटरव्यू में रह जाती। कभी परीक्षा ही अच्छी न होती। कुल मिलाकर श्लोका का चयन कहीं नहीं हो रहा था। 3 साल गुजर गए इसी ख़याल में कि अगली परीक्षा में हो जायेगा, पर जब 3 साल तक कुछ नहीं हो। रहा तो श्लोका ने निश्चय किया वो निजी कंपनी में ही काम करके आगे बढ़ेगी। अब माता पिता का साथ मिल तो रहा था किन्तु बहुत सारे सवाल और सोच के बीच। वो चाहते थे श्लोका सरकारी नौकरी ही करे। निजी कंपनियों के बारे में श्लोका के माता-पिता की सोच ज़्यादा अच्छी न थी। उन्हें लगता था सरकारी नौकरी ही सम्मान की पात्र होती है। श्लोका को निजी कंपनी में काम करने की अनुमति तो मिली पर इस शर्त पर की वह सरकारी नौकरी में आवेदन करना जारी रखेगी।

इसके आगे की कहानी जानने के लिए पढ़िये कहानी का अगला भाग।